((संजू फिल्म में 300 प्लस औरतों के साथ सोने वाले डायलॉग पर पुरुषों की ताली ))
जिस देश में :
किसी एक पिक्चर विशेष ( संजू मूवी ) के एक डायलाग (300 + औरतों के साथ मैं सोया ) पर दर्शक दीर्घा में बैठे असंख्य-असंख्य युवा लगायत उम्रदराज पढ़े-लिखे प्रबुद्धजन, दबा कर ताली बजाते हैं .......वहां उस देश में स्त्री,मां, बहन, बेटी, की सुरक्षा किस हद तक तय है इसका अंदाजा आप-हम सहजता से लगा सकते हैं !
हर वर्ष सीमा पर हमारे सैकड़ों जवान शहीद होते हैं, प्रत्येक वर्ष उनपर एक से ज्यादा फिल्में बन सकती हैं ,
दशकों - दशक बीत जाते हैं एक-दो फिल्में बने, देश की बलि बेदी पर न्योछावर हमारे जवानो की शहादत की Script पर हमारे फिल्म निदेशक काम करने का जोखिम क्यों नही उठाते हैं ???
संजय दत्त साहब से अथवा हिरानी साहब से मेरा कोई व्यक्तिगत मुद्दा नही है अर्ची,
मुझे बुरा लग रहा है केवल उस तथ्य ( inquiries),
उस पहलू ( aspects ) के लिए जिसके चलते किसी Social Face ( सामाजिक चेहरा ) के, किसी Social Celebrity ( सामाजिक हस्ति ) के व्यक्तिगत जीवन के उस हिस्से को उजागर करके ताली बटोरी जा रही है जहां उसके नाम 300 से अधिक औरतों के साथ सोने का दम्भी रिकॉर्ड है !
साहित्य और सिनेमा को समाज का आईना कहा जाता है अर्ची ! साहित्य एवम सिनेमा समाज को जागरूक /अवगत ( aware ) करता है,! अगर संजू फिल्म के Dialogue से इस देश के युवा/पुरूष जागरूक हुए,
एवं पर युवा, पर पुरूष, के नाम 300 सौ से ज्यादा औरतों के साथ सोने का रिकॉर्ड बनने लगा तो हमारे देश में हमारी बहन- बेटियों की स्थिति कितनी नारकीय, कितनी विभत्स होगी जरा कल्पना करिए ???
ऐसे में ! जब देश में 4 साल, 5 साल , 7 साल , 8 साल , की हमारी बच्चियों की सुरक्षा दांव पर है, उन्हें नोच- खसोट कर परखचे-परखचे उनका अस्तित्व मिटाया जा रहा है, क्या संजू फिल्म में फिल्माया गया, प्रेषित किया गया, डायलॉग उचित है ???
क्या इस डायलॉग लिए फिल्म में कोई जगह होनी चाहिए ???
क्या 300 से ज्यादा स्त्रियों के साथ सोने जैसे डायलॉग पर ताली बजनी चाहिए ???
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
09919353106
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