भारत में 18 वीं ई० के महान शिक्षा विद् ईश्वर चंद विद्यासागर जी की पुण्यतिथि पर विशेष !
क्या आजादी के बाद पूर्णत: हमारी अमल में,हमारे आचरण में,अंगीकार किए जा सके हैं वह महान शिक्षा विद् ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जिन्होने 1856 परतंत्र भारत में निडरता के साथ प्रथम बार सम्पूर्ण शिक्षा,नारी शिक्षा, की अलख जगाई थी ?? क्या वजह रही की अपने तत्कालिन समय में चरम पर पहुंचने वाली उनकी अलख स्वतंत्र भारत में फीकी पड़ती चली गई, इतनी फीकी कि 162 साल बाद ( 1856 से 2018 ) आज भारत देश का वर्तमान प्रधानमंत्री वर्ष 2014 से बेटी बचाओ बेटी पढाओ का बिगुल फूंक रहा है भारत में ???
जो मुहिम हो सकती थी वह केवल मुद्दा बनकर रह गयी इस देश में आजादी के सत्तर साल बाद भी चरम असमानता रही देश में ....???
बोलो शिक्षा विद् किस मुंह से आज भारत की यह बेटी आपको आपकी पुण्य तिथि पर अपनी आहत भावनावों का श्रद्धा सुमन अर्पण करे ???
वेदों ने माना है अर्ची ! शिक्षा का दान महादान होता है ! इस दान से पुण्य कुछ और नही सास्वत जगत में, इसे देने वाला भी अमर हो जाता है और पाने वाला भी : क्योंकि :
“स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र”
शिक्षा का दान देने वाला ईश्वर से महान माना जाता है !लेकिन उसकी महानता सतत विस्तार पर आधारित होती है अगर शिक्षा का सकुशल विस्तार बाधित हो जाए तो दान देने वाले का घोर अपमान होता है शायद समय से ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के बताए शूत्रों पर अमल न करके आजादी के बाद से आजतक भारत को ने भी इस महापंडित का घोर अपमान किया है ! एक अलख ज्वाला को सत्ता के मद् मे चूर सरकारों ने 70 साल तक अपने दम्भी राख में दबाए रखा !
किसी भनक तक नही कि : सम्पूर्ण शिक्षा के क्षेत्र में भारत को समृद्ध बनाने के लिए 18 वीं सदी में शिक्षा पंडित ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने कितने पापड़ बेले, कितने जोखिम उठाए, कितना तिरस्कार सहा ! बावजूद तत्कालीन समाज, परिवेश, परिस्थिति, के विरुद्ध जाकर जो साहसिक कार्य इस देश के लिए उन्होने किया उसको जितना साधुवाद करो कम है, कहना गलत न होगा कि भारत में प्रथम बार शिक्षित राष्ट्र एवम स्त्री-पुरुष शिक्षा में समानता के प्रथम उद्घघोषक ईश्वर चंद्र विद्यासागर ही थे !
जूनियर हाई स्कूल की किताबों में पढाए गए महान शिक्षा विद् ईश्वर चंद पता नही अब हम भारतीयों मे कितने जिवित है, जिवंत है, अंगीकार हैं, स्वीकार हैं अर्ची ! ठीक ठीक नही कह सकती कुछ ..???
फिर भी मुझमें जितने जिन्दा हैं आईए आज उतना परोसती हूं आप सबके लिए :
“ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बन्दोपाध्याय था। वे बंगाल के पुनर्जागरण के दृढ़ स्तम्भों में से एक थे।
इनका जन्म पश्चीम बंगाल में हुआ था, करमाटांड़ इनकी कर्मभूमी थी। यह उच्चकोटि के विद्वान थे। इनकी विद्वता के कारण ही इन्हें विद्दासागर की उपाधि दी गई थी।
यह नारी शिक्षा के समर्थक थे। इनके प्रयासों से ही कलकत्ता में एवं अन्य स्थानों में असंख्य बालिका विद्दालयों की स्थापना हुई।
गौर करने योग्य जो विन्दू है वह यह कि :
उस समय हिन्दु समाज में विधवाओं की स्थिति बहुत ही सोचनीय थी। इन्होनें विधवा पुनर्विवाह के लिए लोगमत तैयार किया। इन्हीं के अथक प्रयासों से 1856 ई. में भारत में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ।
लोगों मे विस्वास कायम करने हेतु इन्होंने स्वयम अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक विधवा से ही किया था। इन्होंने बाल विवाह का भी विरोध किया था, बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए इन्होने कानून के साथ - साथ समान एवम सम्पूर्ण बालिका शिक्षा की बात कही थी,
विद्यासागर जी शिक्षाशास्त्री होने के साथ ही एक महान दार्शनिक,उच्च कोटि के लेखक, अनुवादक, मुद्रक, प्रकाशक, उद्यमी, सुधारक एवं मानवतावादी व्यक्ति थे। इन्होने बांग्ला भाषा के गद्य को सरल एवं आधुनिक बनाया था , इन्होने बांग्ला लिपि के वर्णमाला को भी सरल बनाया , इन्होंने संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए भी अथक प्रयास किया था। इन्होंने संस्कृत कॉलेज में पाश्चात्य चिंतन का अध्ययन आरम्भ करवाया !
29 जुलाई 1891भारत के इस विख्यात शिक्षाशास्त्री, समाज सुधारक एवम देश के पुनर्निर्माण के अगुवा, स्त्री शिक्षा कार्यवाहक ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जी का देहाअवसान हुआ था !
आईए आज इस हुतात्मा की पुण्यतिथि पर हृदय की अनंत गहराइयों से इन्हे सादर प्रणाम् करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करें ! एवम प्रण ले कि :
“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ”
की अलख को हम सब अब मद्धिम नही पड़ने देंगे
शायद हमारे कुछ पाप कम हो जाएंगे जो हम सब से हमारे देश से हुआ है श्रद्धेय विद्यासागर जी के बताए रास्तों को बिसरा कर अर्ची !!
नमन !!
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
Bhardwaj@rchita
09919353106
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हाथ घायल होने के बाद भी कल देर रात तक जगकर यह लेख लिखा मैनें ! क्योंकि मेरी आत्मा धिक्कार रही थी एक लम्बे समय से मेरी लेखनीं को ! अंदर से आवाज आ रही थी श्रद्धेय के कार्यों को भारत के सामने रखूं ! शायद देश को इस हुतात्मा की उपेच्छा पर ग्लानि का अनुभव हो जाए !
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