घनघोर घटाओं के केस तले रात खामोशी लेटी हो औंधे मुंह, ऐसे में उमड़-घुमड़ जब बरसे बरखा चार पहर तक अर्ची : लगता है युग - युग की बिरहन कोई बिलख - बिलख नयन नीर बहाए लिख - लिख चिठिया बैरन बूंदन से पी को संदेश पठाए , दादूर, पपिहा, बोले बोली पुरवाई सौतन की जैसी : छू-छू बदन चिढाए, निरमोही को याद ना आई सावन आया नयन तक, जाई बसे परदेश सजनवा भूल गए हियरा की ... कौन बताए बात जिया की कैसे मन बिरहन के सावन आग लगाए कारी रैन भयावन लागे असुअन अंग भिगाए !! कलम से : भारद्वाज अर्चिता 09919353106
घनघोर घटाओं के केस तले
रात खामोशी लेटी हो औंधे मुंह,
ऐसे में उमड़-घुमड़ जब बरसे बरखा
चार पहर तक अर्ची :
लगता है युग - युग की बिरहन कोई
बिलख - बिलख नयन नीर बहाए
लिख - लिख चिठिया बैरन बूंदन से
पी को संदेश पठाए ,
दादूर, पपिहा, बोले बोली
पुरवाई सौतन की जैसी :
छू-छू बदन चिढाए,
निरमोही को याद ना आई
सावन आया नयन तक,
जाई बसे परदेश सजनवा
भूल गए हियरा की ...
कौन बताए बात जिया की
कैसे मन बिरहन के
सावन आग लगाए
कारी रैन भयावन लागे
असुअन अंग भिगाए !!
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
09919353106
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