“कबीर” समाज सुधारक पहले,संत बाद में ,

जब मजार कबीर जैसे सन्त की हो, जो समाज सुधारक पहले थे और संत बाद में, तब वहां जाने से पूर्व भेद-भाव का चश्मा उतार फेंकना चाहिए क्योंकि उनकी मजार पर राम रहींम दोनों बराबर हो जाते हैं !
जब जाति-धर्म की फौलादी दिवार ढहती है और समाज एवं राष्ट्र की तरक्की के लिए मानवता जन्म लेती है तब जाकर इस दुनियां में चेतना-क्रांति के लिए कोई कबीर पैदा होता है अर्ची !
कबीर की मजार पर जाकर कभी कोई काफिर नही होता,
बल्कि फकीर हो जाता है , सनद रहे माला टोपी छापा, आयते-कु-अरान का कबीर ने हमेशा बहिष्कार किया है,  कबीर चौरा में आज की तारीख में इन उपरोक्त सामानों की उपस्थिति कबीर के व्यक्तित्व का घोर अपमान है,

योगी जी का कबीर चौरा जाना एक संत की दूसरे संत से मुलाकात है, इस मुलाकात पर बेजा बहस नही होनी चाहिए ,
साथ ही बेहतर हो कि : आज के पूर्णरूपेण बीमार पड़े हमारे इस समाज के इलाज के लिए योगी जी कबीर चौरा से कोई अमर बेली /अमर बूटी लेकर लौटे !!

: हिंदू कहें मोहि राम पियारा
तुरक कहें रहिमाना
आपस में दोऊ लरि-लरि मूंएं
मरम काहू नहि जाना !!!”
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सांई उतना दीजिए
जामें कुटुम समाय
मैं भी भूखा ना रहूं
साधु न भूखा जाए !!
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जाति-पाति पूछै नहि कोई
हरि का भजे सो हरि का होई !!”
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इन तीनों उदाहरणों में ही समाज की एकता एवम उन्नति का गूढ रहस्य छुपा है,, नेता, अभिनेता, आम जनमानस,  सबके हित के लिए !!!

कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
09919353106

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माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता