{{ अलविदा न्यायाधीश/जस्टिस जे०चेलमेश्वर }}
अलविदा न्यायाधीस/जस्टिस जे० चेलमेश्वर !
“12 जनवरी के उस प्रेस कांन्फ्रेस के बाद आपसे हम सब को डर लगता था, आज की तारीख में विदा लेते-लेते आप भले लाख तर्क दे लें पर आपके उस प्रेस कांन्फ्रेस ने हमारे देश की न्यायिक परम्परा के बुनियादी सिद्धांत को कलंकित करने का कार्य किया है इससे इनकार नहीं कर सकते आप !
भारद्वाज अर्चिता भलीभांति जानती है कि : जस्टिस जे० चेलमेश्वर को यह देश दो महत्वपूर्ण निर्णय देने वाली संविधान पीठ के हिस्सेदार के रुप में याद रखेगा यथा :
@निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानना,
@ राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को निरस्त करने के निर्णय के एकमात्र असहमत न्यायाधीश के रुप में,
पर 12 जनवरी के जे० चेलमेश्वर के उस प्रेस कांन्फ्रेस से कुछ देर पहले भाकपा नेता डी राजा को उनके घर से निकलते देख कर केवल मैं ही नही बल्कि पूरा देश दंग रह गया था ! साथ ही हमारा यह लोक और हमारे इस लोक का तंत्र “उत्तराखंड उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस के०एम०जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट लाने की आपकी बैचेनी को गहराई से समझने भी लगा था ”
श्रीमान जे०चेलमेश्वर जी देश के एक आम नागरिक के रूप में जहां तक मैं अवगत हूं :
“ संसदीय प्रणाली में कोलेजियम को यथासंभव व्यवस्थापिका और कार्यपालिका का पूर्ण रूपेण हृदय से सम्मान करना चाहिए ” इस हिसाब से अगर देखें तो : दुबारा से जोसेफ की नियुक्ति संबंधी प्रस्ताव भेजना न्यायिक आक्रामकता ही समझी जाती .....!!
देश को अच्छा लगता जब आप अपनी सेवानिवृत्ति के बाद मुख्य न्यायाधीश पर बगैर किसी गंभीर आरोप के महाभियोग लगाने की गहरी साजिश पर भी कुछ बोलते,पर अफसोस आप तो इस साजिश के खुद एक अहम किरदार थे महोदय .......
फिर भी आपके लिए कामना है अपनी सेवानिवृत्ति के बाद आप स्वस्थ रहें, और मौका मिले तो डी राजा से कुछ सूत्र लेकर एक किताब भी लिख डालें, इस देश में आपके कद्रदानो की भी कोई कमी नहीं है वह आपको पढेंगे भी और सराहेंगे भी .......???
किन्तू भारद्वाज अर्चिता जैसे तमाम इस देश के आम नागरिक आपको आपकेे दागदार कार्यों के लिए हमेशा अपने सवालों के कटघरे में खड़ा करते रहेंगे !!
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
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