देश के 75 प्रतिशत समाचार समूह का आंतरिक सच
(( देश के 75 प्रतिशत समाचार समूह का आन्तरिक सच ))
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''इससे विभत्स और क्या हो सकता है अर्ची कि :
हमारे देश में 75 प्रतिशत से ज्यादे समाचार पत्र , पत्रिका, ( प्रिंट मीडिया हाऊस ) एवम समाचार चैनल ( इल्लेक्ट्रोनिक मीडिया हाऊस ) का स्वामित्व प्राय: किसी न किसी राजनेता के हाथ मे है,
अथवां किसी न किसी ब्यापार घराने के हाथ में है,,,,,,
बिजनेश करने, काले माल को सफेद करने के अलावा समाचार का जिनको ककहरा भी नही मालूम उनकी सरपरस्ती मे कलम कितना आदर्श स्थापित कर पाती होगी जरा कल्पना करिए |
आज़ादी के बाद एक पत्रकार की कलम नेता और ब्यापारी के हाथ की गुलाम /कठपुतली बनती चली गई , क्योकि :
व्यापारी ने आखबार निकाला, न्यूज चैनल खोला केवल विग्यापन से अपना बिजनेश बढाने के लिये !
नेता ने समाचार पत्र-पत्रिकाए निकाले, न्यूज चैनल खोले केवल अपने ब्लैक मनी को ह्वाईट करने के लिए !
हम महा ग्यानी / महा मूरख कलम नविस ज़ब इन ज़ालिम मीडिया समूह के वहां अपनी कलम, अपनी ऊर्वर विचार धारा के दम पर पहली बार नौकरी ज्वाईन करते है मत पूछो साहब हमारे भीतर कितने आदर्श, कितने साहस, कितने क्रांतिकारी चेतना का वेग होता है, पर झोल तब होता है जब इन समाचार समूहों द्वारा हमसे हमारे वेग छिन कर ताक पर रख दिए जाते है और हमसे बिजनेश वाली रिपोर्टिंग करवाई जाती है ! जो लोग आज की तारिख में टकटकी लगाये बैठे हैं समाचार में न्याय एवं विस्वास के पाने के लिए वह अपना कान साफ़ करके सुन ले अर्ची नेता और व्यापारी के घर जन्म लेने वाले समाचार चैनल, समाचार पत्र-पत्रिका केवल चर्चा के लिए खबर देते है ..न्याय एवम विस्वास के लिए नही ..!!
आज एक बड़े व्यवसायी अखबार समूह में हुई 35 से ज्यादे कलम नविसों की छटनी की खबर से मन को ठेश लगी !
03 जुलाई 2008 से 2 फरवरी 2016 तक लगातार मैने भी एक बड़े अखबार समूह की गंदगी देखी है, अंदर-बाहर दोनों तरफ की गंदगी 9 साल लगातार देखी है, कलमकारो को भरपेट वेतन नही, पीएफ, नही, कनविन्स नही, सीएल नही,मेडिकल नही, मजिठिया नही, केवल शोषण, एक दिन थकान हुई पत्रकारिता में हो रही बनियागिरी से तो मार दिया स्थिपा मूंह पर और गर्व से सिर ऊठा कर घर का रूख कर लिया !
यह और बात हैं अखबार के कीड़े से ज्यादे दिन दूरी नहीं बन पाई, पर वीचारों मे अक्खडपन आज भी ज़िन्दा रखकर काम करना ही पसंद है मुझे !
आज की छटनी का सच समझ सकती हूं मैं, मजिठिया के अनुरुप वेतन देना अब विवशता हो गयी है जब तो डेली मजदूर टाईप के वेसेस पर नए कर्मी रखे जा रहे है जिनका कोई रिकॉर्ड आफिस मे नही होगा सिवा कान्ट्रैक्ट वेस पर काम करने के, इसी वजह से मजिठिया के नियमानुसार वेतन भोगी कर्मचारियो की छटनी हो रही है ||''
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
07/05/2018
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