"सुपर 30" की अवधारणा क्या है ???

‘सुपर 30’ की अवधारणा “कन्सेप्ट” क्या है ?
क्या उनके शिक्षक उच्च कोटि के हैं ?
किसी भी अच्छे स्कूल या कॉलेज़ की परिभाषा भारत में क्या रही है ? सफलता का सूत्र क्या है ? यह संभव है कि IIT के शिक्षकों की काबिलियत बाकी कॉलेज़ों के बराबर रही हो, पर विद्यार्थियों की काबिलियत बेहतर हो। वो चुने ही जब टॉप रैंक वाले गए, तो बेहतर कर गए इसमें हैरान होने जैसा क्या है ?
आप दूध से मलाई निकाल कर कहेंगे कि मलाई बाकी के दूध से अधिक स्वादिष्ट है?

केरल की कहानी पढ़ी कि अचानक सरकारी स्कूलों में दो लाख अधिक ऐडमिशन हो गए। गाँव के गाँव ने निर्णय ले लिया कि सरकारी स्कूल में ही पढ़ेंगे। प्राइवेट स्कूलों से चौथी कक्षा तक के बच्चों ने एकमुश्त सरकारी में बदली करा ली। अचानक जैसे सरकारी स्कूलों में जोश आ गया। अब ऐसे विद्यार्थियों की जमात थी जो मजबूरी वश नहीं, बल्कि बेहतरी के लिए सरकारी स्कूल आए।

वहीं पंजाब और हरियाणा की खबर पढ़ी, जो उन्नत राज्य होकर भी सरकारी स्कूलों के परर्फॉर्मेंस में कमजोर रहे। पंजाब के कुछ स्कूलों से एक भी बच्चे ने मैट्रिक परीक्षा पास नहीं की। हरयाणा में पचास प्रतिशत से कम का परिणाम अच्छा है। वहाँ केरल के उलट सरकारी से प्राइवेट की ओर प्रयाण है।

तो समस्या स्कूल से अधिक ‘एडमिशन ट्रेंड’ की है। जिधर भीड़ जाएगी, माहौल बनेगा, वहाँ निष्कर्ष बेहतर होंगे और सुविधाएँ भी आनी शुरू होगा। जहाँ भीड़ ही नहीं, वहाँ सरकार का भी मनोबल टूट जाता है। एक ‘एज़ुकेशन सेस’ लगा दिया, कुछ यूनीसेफ़ के गुर्गे दौड़ा दिए, शिक्षा-मित्र और डिज़िटल एज़ुकेशन इत्यादि की दो-चार जगह नींव डाल दी। सरकार अब और क्या करे जब जनता का ही इंटरेस्ट नहीं ? सूरज प्राइवेट में उगता है, तो उधर ही आरती दिखाओ।
RTE के तहत वहीं कुछ एडमिशन करा दो।

दिल्ली की बात नहीं करनी वहाँ स्कूल पहले भी ठीक थे  आज भी ठीक हैं । हाँ ! अगर बाकी राज्यों में सब समूह बनाकर निर्णय लें कि एक बड़ी जमात में पचास बच्चे सरकारी स्कूलों की ओर घर वापसी कर लें, तो वही ‘सुपर 50’ बन जाएगा। बाद इसके जो फीस का पैसा बचे, उससे अपने बच्चे के लिए आई-पैड खरीद दीजिएगा, सम्भव हो तो कुछ बढ़िया - बढियां किताबे भी ।
प्राइवेट भी तो आपके बच्चे के लिए यही सब करेगा बस Admission fees एवम "फीस" के नाम पर वजनदार रकम आपसे ऐंठेगा बे-मतलब झाम दिखा कर !!

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