{{ हे कृष्ण अब वज्रपात करो इस संसार पर, }}

हे कृष्ण अब वज्रपात करो इस संसार पर,
द्वापर में एक द्रोपदी थी,
एक दुशासन था,
एक महाभारत था,
कौरव केवल 100 थे,
आज हर घर में दुशासन हैं,
हर घर में कौरव हैं,
आज हर गली ,कूचे ,घर, चौराहे पर
7 से 70 साल की द्रौपदियां खड़ी है ؛
नोची, खसोटी, नंगी, की जा रही है,
सरेआम चीर हरण हो रहा है
बाद इसके उन्हे मौत के घाट भी उतार दिया जा रहा है ,
“मै”और “तुम” दोनों देख,सुन,समझ,पा रहे है कि :
द्वापर से आज तक के बीच में .....
जमीन-आसमान जैसी विषमता है
किन्तु इतनी विषमता के बावजूद
एक समानता है :
राजा तब भी अंधा था, राजा अब भी अंधा है,
न्याय का डंडा तब भी घून लगा हुआ था,
न्याय का डंडा अब भी घून लगा हुआ है ,
द्रोपदी तब भी दांव पर थी,
द्रोपदियां अब भी दांव पर हैं ...
कहो कृष्ण ! अब :
एक साथ करोड़ों द्रोपदी को कैसे न्याय दिलाओगे ?
कैसे लज्जा की चीर बढ़ाओगे ?
सच कहती हूं सखा मैं :
एक-एक करके एक दिन तुम भी थक जाओगे
इसलिए बेहतर है एक साथ इस अखंड सृष्टि का
विनाश कर दो .....
और कर दो इस पापी युग का अंत ...!!
गोविन्द :
क्या इस बेटी की करुण पुकार सुन पा रहे हो आप .....????
क्या इस बेटी की दारुण दशा पर
न्याय विचार पा रहे हो आप .....???

कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
09919353106

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